बेलछी की मजूर महिला अलोधनी देवी उस घटना के बारे में बताती है. कुर्मी महावीर महतो और हरिजन सिंधवा दोनों पहले साथ-साथ थे. दोनों अपराधी प्रवृत्ति के थे. सिद्धेश्वर पासवान उर्फ सिंधवा नालंदा का पुश्तैनी घर छोड़ कर अपनी ससुराल बेलछी में बसने आया था. वह दबंग किस्म का इंसान था. आसपास के गांवों में कुर्मी जोतदारों का दबदबा है. महावीर चौधरी भी कुर्मी था. उसे आसपास के बड़े कुर्मी जोतदार मदद देते थे. उसके पास लगभग 20 बीघा खेत और ईंट का मकान था. आज भी इस पूरे गांव में दो-तीन पक्के, लगभग चार ईंट के और बाकी कच्चे मकान हैं. महावीर का इस गांव में आतंक था. आरंभ में महावीर ने सिंधवा की खूबियों को परखा, फिर अपने दल में शामिल किया. सिंधवा गरीब हरिजनों-दुसाधों के शोषण का विरोध करता था. इस कारण हरिजन दुसाध उसे भरपूर मदद देते थे. बाद में दोनों में ठन गयी. यह मनमुटाव भी आर्थिक सवालों को लेकर हुआ. दोनों जानी दुश्मन बन गये.
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